April Fools' day - 1 April History - When is April Fool - in Hindi - 2021
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What is April fool |
मूर्ख दिवस क्या है ? What is April Fool
जैसा कि आप सभी देखते चले आ रहें हैं कि हम भारतवासी प्रश्चिमी सभ्यता के गुलाम होते जा रहें है। वो सोने के चिड़िया भारत को तो लुट ही गए साथ ही साथ अब वो हमारी संस्कृति हमारा सम्मान भी लूटते नजर आ रहें । और हम मात्र उनके लिए परिहास का कारण बनते जा रहें है। जहां प्रतिदिन मां की सेवा की जाती थी उसके लिए हम एक दिन में सिमट कर रह गए हैं जिसे Mother's day कहते हैं। जिन पिता का सम्मान हम प्रतिदिन करते थें जिनकी छत्र छाया कुदृष्टियों कुप्रभावों के सामने सुरक्षा कवच का कार्य करती थी, आज हम उनके लिए एक दिवस में सिमट कर रह गए हैं जिसे Father's day कहते हैं।
ठीक इसी प्रकार कितने दिन है जिसमे से April Fools' Day एक दिन है, जिसे मूर्ख दिवस भी कहा जाता है। 1 अप्रैल को पूरे विश्व में मुर्ख दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगो का मजाक व लोगो को बेवकूफ बनाया जाता है और उस पर हँसा जाता है। कितने शर्म की बात है और बड़े ही आश्चर्य की बात है कि ये मूर्ख दिवस था तो एक दिन का परन्तु इसके वजह से हम कई सदियों से अपने ही संस्कृति परम्परा पर हँसते आ रहें हैं।
एक अप्रैल को मूर्ख दिवस कहाँ से प्रारम्भ हुआ ?
वैसे तो प्रचलित कथन है कि एक अप्रैल मूर्ख दिवस का प्रारम्भ को 1582 में फ्रांस में हुआ था। परन्तु धीरे धीरे इस दिन को सक्रियता मिलती गयी और फिर ये कई अन्य देशों जैसे बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, इटली में भी विस्तार हुआ, 19वीं शताब्दी से लगभग भारत में भी इस अप्रैल फूल को स्थान मिलने लगा और तबसे धीरे-धीरे ये भारत में भी प्रचलित हो गया और लोग जमकर इस दिन हसि ठिठोली करते और दूसरे को मूर्ख बनाते है और स्वयं भी बनते हैं।
कई देशों में तो इस दिन छुट्टी भी दी जाती है ताकि लोग इस दिन कार्यालय, घर, बाहर, पार्क अन्य सभी जगह एक दूसरे को मूर्ख बनाकर इस दिन का लुफ्त उठाएं।
इस दिन के नाम पर बहुत सारी कथा प्रचलित है जिसे हम सामान्य तौर पर जानते है, परन्तु क्या आप इसकी असली वजह जानते हैं?
एक अप्रैल को मूर्ख दिवस बनाकर भारतीय परम्परा का अपमान कैसे...?
आपको पता होना चाहिए कि पश्चिमी सभ्यता western culture में जितने भी कार्य और नीतियां है सभी भारतीय परंपरा के विपरीत ही किये जाते हैं। हो भी क्यों न पूर्व वो पश्चिम में अंतर तो है ही, जिस तरह संस्कार व सूर्य का उदय होता है तो दूसरी तरफ संस्कार और सूर्य का अस्त, तो आईये जानते हैं कि इस अप्रैल को ऐसा क्या होता है जिसके वजह से हम ऐसा कहते है।
भारत में मूर्ख दिवस का इतिहास : History of April fool in India
हम सभी जानते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश के साथ साथ संस्कृति प्रधान और विश्वगुरु जैसी ख्याति को रखने बाला है। जिसका एक मात्र कारण है भारतीय परंपरा और पौराणिकता जिसमें हैं कोई भी शुभ कार्य ज्योतिष गणना और पंचांग पद्धति और ऋतुओं एवं नक्षत्रों को देखते हुए किया जाता है। जी हाँ एक अप्रैल को भी कुछ ऐसा ही हुआ।
आप सभी को पता होना चाहिए कि भारतीय परंपरा गत वर्ष का प्रारम्भ नए सम्वत्सर का प्रारम्भ रोमन कैलेंडरों के अनुसार इस अप्रैल के आसपास ही आता है और ऐसा भी माना जाता है कि जिस समय मूर्ख दिवस का प्रारम्भ हुआ उस वर्ष भारत में नए संवतसर और नए वर्ष का प्रारम्भ एक अप्रैल को ही आया था, यही वजह भी है कि हम पुराने दिनांक और तिथियों के अनुसार ही चलते रहें इसी कारण उवहास तौर ओर ये एक अप्रैल रखा गया क्योंकि ये दिन भारतवर्ष के लिए अत्यंत शुभ दिन था और है।
और आज भी भारत में कोई भी शुभ कार्य रोमन कैलेंडरों से नही बल्कि भारतीय परंपरा गत पंचाग के तिथि अनुसार मनाते है और यही तक नही भारत के लिए किसी भी कार्य का नया सत्र एक अप्रैल को ही प्रारम्भ होता है।
क्योंकि यहां से नए सत्र और नए वर्ष का प्रारम्भ माना जाता रहा और यहां से कितने नए शुभ कार्य प्रारम्भ भी हुए चाहे शिक्षण पद्धति हो या रिजर्व बैंक की स्थापना, चाहे वित्त वर्ष का प्रारम्भ हो या तारापुर में देश के पहले परमाणु बिजली घर प्रारम्भ और भी अनेक ऐसे शुभ कार्य किये गए और आपको ये भी पता होना चाहिए कि THE HINDU नामक पत्रिका को दैनिक पत्रिका में 1889 को इसी दिन शामिल किया गया था।
जिसकी पहली पत्रिका 20 सितंबर 1888 में प्रकाशित हुई थी। सभी कार्य नए सम्वत्सर से ही प्रारम्भ किये जाते जिसकी गणना में परेशानी की वजह मानकर रोमन कैलेंडर में 1 अप्रैल को मानकर चलने लगा और यही वजह है कि हमारे भारतीय संस्कृति का उपहास करने के लिए इस एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाया गया। इससे सुनते ही भारतीयों के सीने पर सांप लोटने के बजाय वो एक दूसरे को मूर्ख बनाने में लगे होते हैं।
हम भारतीय सच में कितने मूर्ख है कि अपने ही परम्परा को नष्ट करने का कार्य अपने इन्ही हाथों से करते आ रहें हैं। उन्होंने "फुट डालो राज करो" ये नीति अपनाकर भारत को गुलाम की और अब वो भारतीय परंपरा के विरुद्ध जाकर हमारे संस्कृति को गुलाम कर रहें हैं। और अति तो तब होता है जब हम अपने संस्कृतियों, संस्कारो का हनन अपने ही हाथों से करने लगे हैं।
आखिर हम भारतीय इस कुम्भकर्ण निद्रा से कब जागेंगे आखिर हम अपनी सभ्यता का उपहास अपने हाथों से कब तक करते रहेंगे,ये प्रश्न किसी व्यक्ति विशेष से नही अपितु सम्पूर्ण भारतवासियों से है। हम नए दौर को अपनाने के चक्कर में नकलची होते जा रहें हैं, जिस दिन हमे शुभ तौर ओर मनाना चाहिए उस दिन हम स्वयं एक दूसरे को मूर्ख बनाने और तुले हैं, हमें हमारे संस्कृति संस्कार सभ्यता गरिमा अस्मिता को बचाने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए और हमेशा ये एक अच्छे भारतीय बनकर भारत को पुनः विश्व गुरु का पद दिलाने में कार्यरत रहना चाहिए...
जय हिंद जय हिंदुस्थान।
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