Ghumantu Janjati Samaj - Tribal Society Indian History - In hindi
![]() | |
|
खानाबदोश एवं चरवाहे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमा करते थे। वे ऐसा आपने जानवरों के लिए चारागाह की तलाश में करते थे। ये दूध, घी तथा ऊन जैसे पशुचारी उत्पादों की बिक्री कर अपनी जीविका चलाते थे। वे खेतिहर गृहस्थों से अनाज, कपड़े एवं बर्तन आदि प्राप्त करते थे तथा बदले में इनको ऊन, घी जैसी चीजें देते थे। कुछ चरवाहे मवेशियों एवं घोड़ों की बिक्री भी करते थे।
व्यापारी जनजाति- बंजारा :-
कुछ खानाबदोश अपने जानवरों पर सामानों की ढुलाई का काम भी करते थे। एक जगह से दूसरे जगह आते-जाते वह सामानों का क्रय-विक्रय करते थे। ऐसी ही एक व्यापारी जनजाति थी - बंजारा। बंजारा अपने परिवारों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान घूमते थे।
वे खाद्य पदार्थों का व्यापार करते थे। उनका कारवाँ ‘टांडा’ कहलाता था। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी शासन काल में नगर के बाजारों तराना की ढुलाई का काम बंजारे ही करते थे। मुगल काल में सैन्य अभियानों के दौरान मुगल सेना के लिए खाद्यान्न की धुलाई बंजारों द्वारा की जाती थी। कुछ जनजाति फेरी वाले थे जो रस्सी, चटाई आदि का निर्माण कर गाँव-गाँव में जाकर बेचा करते थे।
सामाजिक परिवर्तन एवं जातियाँ :-
कुछ जनजातियाँ विभिन्न नगरों और गाँव में अपनी कला का प्रदर्शन करती थी। इनमें नर्तक, मदारी और अन्य तमाशाबीनों की जातीयाँ थी। मध्यकाल में कई नई जातियाँ जाति व्यवस्था में शामिल होने लगी थी। यह अर्थव्यवस्था एवं समाज की आवश्यकता बढ़ने के कारण हुई। कई जनजातियों को जाति व्यवस्था में शामिल कर लिया गया।
विशेषज्ञता प्राप्त शिल्पीयो जैसे सुनार,लोहार, बढ़ाई आदि को भी जाति का दर्जा दे दिया गया। वर्ण में भी छोटी-छोटी जातियाँ उभरने लगी। उदाहरण के लिए ब्राह्मणों की कई उपजातियाँ उभरकर सामने आईं। अब वर्ण के स्थान पर जाति महत्वपूर्ण हो गई।
11वीं एवं 12 वीं शादी तक आते-आते क्षत्रियों के बीच हूण, चंदेल, चालूक्य जैसे नए राजपूत गोत्रो की शक्तियों में वृद्धि हुई। पूर्व में इनमें से कुछ जनजातिय समाज के अंग थे जो बाद में राजपूत कहलाने लगे। झारखंड में चारों एवं खरवारों के कुछ कुल कलांतर में राजपूत कहलाने लगे। धीरे-धीरे वे प्रायः कृषि वाले क्षेत्रों में शासक बन बैठे।
इसे भी जाने लिंगराज मंदिर का इतिहास Lingaraj Temple
Must Read : असल जिंदगी का पक्षीराज डॉ. सलीम अली
Keyword: tribal society in india,pdf,history of tribal communities,in hindi,sociology,ancient
0 Comments
Thanks for comment! Keep reading good posts in Reyomind.com Have a good day !